*सच और झूठ की दुनियां से झूठ का पर्दाफाश*
नहीं थम २हा कोरोना हो भी कैसे हम आपको ले चलते हैं सरकारी अर्द्धसरकारी के हालातों को दिखाने कि आखिरकार किस तरह सरकारी कुर्सी अर्द्ध सरकारी कुर्सियो में बैठे साहब पैसे बटोरने में लगे है पर वहीं माने तो सोशल distancing सिर्फ मजाक बनकर २हा गया जो सिर्फ बेवश मजदूरों को घर वापसी पर सरकारी जामा पहनाया जाता है।
यह है कानपुर का केस्को जो नौबस्ता के हंसपुरम के अन्तर्गत आता है। यहां जब हमने दौरा किया तो अच्छे वक्त से भी ज्यादा खामिया नजर आई
*पहली = बहुत जरूरी है, सोशल डिस्टेंसिग, जो शायद मजाक बनाकर उठा दिया गया हवा मे।*
*दूसरी : पहले से कहीं ज्यादा विल भुगतान*,
*_सवाल = क्या लाक डाउन के वक्त जनता घर भी टक्साल लगाकर मुद्राएं छाप रही थी, आखिरकार कैसे रहे सरकारी वायदे जो खुद ही उनके कर्मचारियों द्वारा तोड़े जाते है।_*
*तीसरा - सरकार ने आम जनता को क्या झूठा धिलासा दिया था कि जनता को करों, भुगतान , किरायों से लेकर हर जगह सरकार लाक डाउन के चलते कोई बिल नही लेगी या नहीं लिया जाएगा, लिया गया तो कानून जुर्म होगा।*
अब देश के कोनो कोनों से आ रही इस तरह की और तस्वीरें खुद में सवाल बनकर २ह गई हैं। इस वक्त देश की जनता वैश्वक बिमारी कोरोना को देखे या कमर में पट्टा बांध कर लम्बी लम्बी लाइनों में चपक कर खड़े होकर सरकारी बिलों 'करों को चुकाए। मुद्दा गहरा पर जवाब कोई नहीं Iक्या कोरोना यूं भगाना संभव है हमारे देश से, यह एक अहम सवाल केन्द्र व राज्य सरकार के लिए
